इंसानियत(Insaniyat) खुद में एक धर्म(Dharm) है, इसे हम धर्म(Dharm) अलग नहीं कर सकते बिना इंसानियत(Insaniyat) के धर्म (Dharm) ऐसे है जैसे बंजर भूमि जिसमे जितना भी बीज डालते जायो खेती कभी भी हरी-भरी लहलहा नहीं सकती |जो पूजा हम भगवान के चरणों में करते हैं वो केवल द्रव्य पूजा है| पर अगर किसी जीते जागते इंसान की सेवा करते हैं वो भाव किसी पूजा से कम नहीं| भगवान् के चरणों में जल घंटे भर बाद भी चढ़ा दे तो को फर्क नहीं पड़ेगा पर यदि किसी प्यासे को पानी १ घंटे बाद पिलाओगे तो वो मर भी सकता है सो हमेशा ध्यान दे जिस कर्म की आवश्यकता सबसे पहले करने की है वही धर्म(Dharm) है और इंसानियत (Insaniyat)भी…..
“एक किस्सा आपसे शेयर करती हु संक्षेप में बात तो बहुत छोटी सी है बस भाव बताना चाहती हु.. मैं एक दिन गुरद्वारा साहेब जा रही थी माथा टेकने हाथ में कुछ फ्रूट्स पकडे हुए थे जो मुझे बाबा जी के चरणों में रखने थे (क्योंकि उस मौसम के वो पहले फ्रूट्स थे जो भगवान को भोग लगाकर ही शुरू करने थे) और मेरी माता जी की इच्छा थी के ऐसा ही हो.. लो जी गुरद्वारा साहेब आ गया जो घर से कुछ दुरी पर ही था| अभी मैंने पहली सीढ़ी पर कदम रखा ही था की सामने से एक गरीब छोटा सा बच्चा आते हुए देखा अपनी माँ के साथ मटमैले कपड़ो में जो शायद इस भरी गर्मी में गुरद्वारे से ठंडा पानी पीने आया था तभी अचानक मेरे मन में क्या आया की मैंने उससे पूछा बच्चे फल खाओगे उसने अपनी माँ की तरफ देखा और मुस्कुरा कर सर हिलाया.. मैंने हाथ उसकी तरफ बढ़ाया और वो पैकेट उसे पकड़ा दिया वो ख़ुशी ख़ुशी माँ के साथ अपने घर चला गया| उस पल एक अदभुद सी ख़ुशी हुई क्योंकि मुझे लगा मैंने वो चीज़ सही जगह पर दी जिसे असल में उसकी ज़रूरत थी शायद ..”
इंसानियत(Insaniyat)ही पहला धर्म(Dharm) है इंसान का,
फिर पन्ना खुलता है गीता या कुरान का.. ||
अब यदि आप गहरायी में जानना चाहते हैं के इंसानियत(Insaniyat) है क्या तो आइये इसके विषय में भी चर्चा कर लेते हैं..
इंसानियत(Insaniyat) यानी मानवता(Insaniyat), फिर चाहे वो किसी भी देश का हो, किसी भी जाति का हो या फिर किसी भी शहर का हो सबका एकमात्र प्रथम उद्देश्य एक अच्छा इंसान बनने का होना चाहिए। हर किसी इंसान के रंग रूप, सूरत, शारीरिक बनावट, रहन-सहन, सोच-विचार और भाषा आदि में समानतायें भी होती हैं और असमानताएं भी होती हैं, लेकिन ईश्वर ने हम सभी को पाँच तत्वों से बनाया है। हम सभी में इस परमात्मा का अंश है। आज के इस दौर में इंसान मानवता(Insaniyat) को छोड़कर, इंसान के द्वारा बनाये गए धर्मों के भेद-भाव के रास्ते पर निकल पड़ा है। जिसके चलते एक इंसान किसी दूसरे इंसान की ना तो मज़बूरी समझता है और ना ही उसकी मदद ही करता है। यहाँ पर इंसानियत(Insaniyat) पर धर्म(Dharm) की चोट पड़ती है। लोग इंसानियत(Insaniyat) को छोड़कर अपने ही द्वारा रची गई धर्मों (Dharm)की बेड़ियों में जकड़े जा रहे हैं। इंसान धर्म(Dharm) की आड़ में अपने अंदर पल रहे वैर, निंदा, नफरत, अविश्वास, उन्माद और जातिवादी भेदभाव के कारण अभिमान को प्राथमिकता दे रहा है। जिससे उसके भीतर की मानवता(Insaniyat) धीरे धीरे दम तोड़ रही है। इंसान प्यार करना भूलता जा रहा है, अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है और तो और अपने परमपिता परमात्मा को भी भूल गया है। इन सबके चलते मानव के मन में दानवता का वास होता जा रहा है।
भगवन इंसानियत (Insaniyat)में बस्ते हैं,
और लोग मज़हबो(Dharm) में ढूंढ़ते हैं ||
आज धर्म(Dharm) के नाम पर लोग लहू-लुहान करने से पीछे नहीं हटते जिससे संप्रदायों के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं। आज इंसान- इंसान का दुश्मन बनता जा रहा है क्योंकि वो पराये धर्म(Dharm) से है। लोगों का मूल उद्देश्य अपना स्वार्थ सिद्ध करना हो गया है किसी को पैसे का स्वार्थ है तो कोई ओहदे को लेकर और तो कोई एक तरफ़ा प्यार के स्वार्थ में अँधा है। इसी के चलते मानव इंसानियत (Insaniyat)को अपने जीवन से चलता कर देते हैं। किसी शायर ने क्या खूब कहा है- ”इंसान इंसान को डस रहा है और साँप बैठकर रो रहा है”
यही वो इंसान है जो अब सिर्फ ‘मैं’ शब्द में ही उलझकर रह गया है और इसी में जीना चाहता है। हाल के दिनों में ऐसी कुछ घटनाएं सामने आई हैं, जिन्हें देखकर प्रतीत होता है कि ‘मरते हैं इंसान भी और अब मर रही है, इंसानियत'(Insaniyat)। कुछ घटनाओं को देखें तो लगेगा कि इंसानियत (Insaniyat)तार तार हो रही है। एक घटना अनुसार सड़क हादसे में मौत से जूझते हुए एक इन्सान को भी लोगों ने यूँ ही सड़क पर छोड़ दिया मरने के लिए। किसी ने उसकी मदद करनी नहीं चाही। यह जरूर किया कि उस इंसान के दर्द से तड़पने की वीडियो बनाई और उसको सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया ताकि उस मरते हुए इंसान के साथ साथ मर रही इंसानियत(Insaniyat) का चेहरा भी देखा जा सके। लोग आज भी यही सोचते हैं कि अगर ऐसी घायल अवस्था में वो किसी को अस्पताल ले जाते हैं तो उनको कानूनी कार्यवाही के झंझट में पड़ना होगा। मैं समझती हूँ कि यहाँ लोगों में जानकारी का आभाव है, उनको यह नहीं पता कि ऐसे किसी भी घायल इंसान को अस्पताल पहुँचाने वाले को अपना नाम नहीं बताने की छूट है। यहाँ तक कि सरकार ने आपातकालीन सुविधा भी उपलब्ध कराई है ताकि किसी को भी घायल व्यक्ति के इलाज़ का भार ना उठाना पड़े। एक ये भी वजह है जो लोग किसी दूसरी की मदद करने से पहले कई बार सोचते हैं कि कहीं इन सब का असर उनकी जेब और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा पर ना पड़े।
ज़रूरी नहीं जिसमे सांस नहीं वही मुर्दा है,
जिसमे इंसानियत (Insaniyat) नहीं वो भी तो मुर्दा ही है ||
निष्कर्ष में मैंने यही पाया है कि चाहे बात किसी जाति के विवाद की हो या बात किसी इंसान की मदद न करने की हो या फिर धर्म(Dharm) के नाम पर इंसान को इंसान के खिलाफ करने की हो, इन सभी में शिक्षा का अभाव है, समझ की कमी है और अपना खुद का स्वार्थ है क्योंकि अब इंसानों में “मै” शब्द का अभिमान बढ़ता जा रहा है। यह अभिमान जब तक हममें रहेगा तब तक उपरोक्त घटनाओं का जो विवरण दिया गया है वैसे किस्से सुनने को मिलते रहेंगे। इंसानियत(Insaniyat) कुछ रुपयों को लेकर, अपने लालच और अपने लोभ व लालसा को लेकर ऐसे हर बार शर्मसार होती रहेगी। हम लोगों को अपने संस्कारों को अपनी शिक्षा पर अमल करने की जरूरत है। मैं यह नहीं मानती की कोई भी धर्म(Dharm) या मज़हब इंसानियत (Insaniyat)को मारने के लिए कहता होगा तो क्यों ना हम यह शुरुआत अपने परिवार से करें अपने परिवार को समय देकर उनका हमारे जीवन में महत्त्व को समझें। अगर शुरुआत अपने घर से होगी तभी तो सामाजिक तौर पर इंसानियत(Insaniyat) को ला पाएंगे।
मरते थे इंसान कभी पर, अब मर रही है इंसानियत,
पैसे सत्ता और ताकत के लालच में आ गई है, हैवानियत
धर्म और मज़हब का ढोल बजा के लहू लुहान किया इंसानों को,
जाति, धर्म का लालच देके झोंक दिया इंसानियत को,
मार दिया उस प्यार को और उसके प्यारे एहसास को,
जप रहा है जाप बस “मैं” शब्द के नाम को,
दया की भावना तो चली गई, ना ही अपनों का अब दर्द रहा,
देख ख़ुशी दूसरों की आज का इंसान क्यों जल रहा,
कैसा युग है, और क्या समय की मार है, प्यारे
इंसान इंसान को डस रहा और साँप बैठकर रो रहा।।