“ज़िन्दगी कभी आसन नही होती इसे आसान करना पड़ता है,कुछ नजर अंदाज करके कुछ बर्दास्त करके..”
जीवन का अर्थ क्या है
जीवन का अर्थ क्या है? मैं जीवन में उद्देश्य, पूर्णता तथा सन्तुष्टि कैसे खोज सकता हूँ? क्या मैं किसी बात के चिरस्थायी महत्व की प्राप्ति कर सकता हूँ? बहुत सारे लोगों ने इन महत्वपूर्ण प्रश्नों के ऊपर सोचना कभी नहीं छोड़ा है। वे सालों पीछे मुड़कर देखते हैं और आश्चर्य करते हैं कि उनके सम्बन्ध क्यों नहीं टूटे और वे इतना ज्यादा खालीपन का अहसास क्यों करते हैं, हालाँकि उन्होंने वह सब कुछ पा लिया जिसको पाने के लिए वे निकले थे। एक खिलाड़ी जो बेसबाल के खेल में बहुत अधिक ख्याति के शिखर पर पहुँच चुका था, से पूछा गया कि जब उसने शुरू में बेसबाल खेलना आरम्भ किया था तो उसकी क्या इच्छा थी कि कोई उसे क्या सलाह देता। उसने उत्तर दिया, “मेरी इच्छा थी कि कोई मुझे बताता कि जब आप शिखर पर पहुँच जाते हैं, तो वहाँ पर कुछ नहीं होता।” कई उद्देश्य अपने खालीपन को तब प्रकट करते हैं जब केवल उनका पीछा करने में कई वर्ष व्यर्थ हो गए होते हैं ।हमारी मानवतावादी संस्कृति में, लोग कई उद्देश्यों का पीछा, यह सोचकर करते हैं कि इनमें वे उस अर्थ को पा लेंगे। इनमें से कुछ कार्यों में: व्यापारिक सफलता, धन-सम्पत्ति, अच्छे सम्बन्ध, यौन-सम्बन्ध, मनोरंजन, दूसरों के प्रति भलाई, वगैरह सम्मिलित है। लोगों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि जब उन्होंने धन-सम्पत्ति, सम्बन्धों और आनन्द के लक्ष्यों को प्राप्त कर लिया, तब भी उनके अन्दर एक गहरी शून्यता थी, खालीपन का एक ऐसा अहसास जिसे कोई वस्तु भरती हुई प्रतीत नहीं होती।
बाइबल की सभोपदेशक नामक पुस्तक के लेखक ने इस बात का एहसास किया जब उसने कहा, “व्यर्थ ही व्यर्थ! व्यर्थ ही व्यर्थ ! …सब कुछ व्यर्थ है” | राजा सुलेमान के पास, जो सभोपदेशक का लेखक है, परिमाप से परे अथाह धन-सम्पत्ति थी, अपने या हमारे समय के किसी भी व्यक्ति से ज्यादा ज्ञान था, सैकड़ों स्त्रियाँ थीं, कई महल और बगीचे थे जो कि कई राज्यों की ईर्ष्या के कारण थे, सर्वोत्तम भोजन और मदिरा थी, और हर प्रकार का मनोरंजन उपलब्ध था। फिर भी उसने एक समय यह कहा कि जो कुछ उसका हृदय चाहता था, उसने उसका पीछा किया। और उस पर भी उसने यह सार निकाला कि, “सूरज के नीचे” – ऐसा यापन किया हुआ जीवन जैसे कि जीवन में केवल यही कुछ हो जिसे हम आँखों से देख सकते हैं और इन्द्रियों से महसूस कर सकते हैं – व्यर्थ है! ऐसी शून्यता क्यों है। क्योंकि परमेश्वर ने हमारी रचना आज-और-अभी का अनुभव करने के अतिरिक्त किसी और वस्तु के लिए भी की थी। सुलेमान ने परमेश्वर के विषय में कहा, “उसने मनुष्यों के मनों में अनादि-अनन्त काल का ज्ञान रखा” अपने हृदयों में हम इसबात को जानते हैं कि केवल “आज-और-अभी” ही सब कुछ नहीं है।
जीवन का उद्देश्य
साधारण शब्दों में इस संसार में अनेक प्रकार के लोग हैं जो अपनी जिंदगी अपने सोच के आधार पर जी रहे हैं ! हर कोई जिंदगी के दौड़ में सामिल है ! एक दुसरे को पछाड़ना ही जिंदगी का मक़सद बन गया है ! आज किसी के पास वक़्त नहीं है ! अपनों के लिए भी नहीं ! सब जिंदगी जी रहे हैं , लेकिन कहीं सुकून नहीं कहीं शान्ति नहीं ! परमात्मा के बारे में जानने का बात तो दूर , आज कल तो परमात्मा भी शक के दायरे में है ! परमात्मा एक से कई बन गए हैं ! अब तो इस बात पर लड़ाई होती है कौनसा परमात्मा श्रेष्ठ है?
शांत और सुकूनभरा जीवन
आदमी कितना जीता है? 70 या 80 साल। बहुत अच्छी सेहत हुई तो 100 साल। इन 100 वर्षों में वह प्रारंभिक 25 वर्ष तो संसार, खुद को समझने और करियर बनाने में ही लगा देता होगा। अगले 25 वर्ष वह गृहस्थ जीवन के संघर्ष में गंवा देता होगा और अंत में सोचता होगा कि अब जिया जाए… किन्तु अब जीने के लिए बचा क्या….. ? शांत और सुकूनभरा जिंदगी के लिए हमें क्या करना चाहिए ? नीचे दिए गए पंक्तियाँ में एक पागल के मुँह से सुना था !
- इस तरह न कमाओ कि पाप हो जाये
- इस तरह न खर्च करो कि क़र्ज़ हो जाये
- इस तरह न खाओ कि मर्ज़ हो जाये
- इस तरह न बोलो कि क्लेश हो जाये
- इस तरह न चलो के देर हो जाये
- इस तरह न सोचो कि चिंता हो जाये
लेकिन आजकल मनुष्य इसका बिपरीत करता है ! कभी कभी में सोचती हूँ पागल कौन है ?
मनुस्य कि जिंदगी एक अहम् वरदान है ! यह एक अमूल्य अवसर है परमात्मा के बारे में जानने का! यह अवसर को गवाना सब से भारी नुक्सान है !इंसान को नमक कि तरह होना चाहिए, जो खाने में रहता है तो दिखाई नहीं देता और अगर न हो तो उसकी कमी महसूस होता ! मनुष्य के जिंदगी का अर्थ तब पूरा होगा जब वह किसी और के काम आये !
मनुष्य के जिंदगीं का उद्देस्य परमात्मा को जानना है ! इस मक़सद के लिए इंसान को कोशिश करनी चाहिए ! हमें सब से पेहेले एक अच्छा इंसान बनना चाहिए ! इसमें अनेक बाधाएं आएंगी ! लेकिन लगातार कोशिश ही सफलता लाती है ! धीरे धीरे बहती हुई एक धारा पत्थर में छेद कर देती है ! निरंतर प्रयास होना चाहिए ! किसी मक़सद के लिए खड़े हो तो पेड़ कि तरह खड़े रहो ! और गिरना है तो गिरो बीज कि तरह ताकि दोबारा उग सको उस मक़सद को पूरा करने के लिए ! गिरने से हार नहीं होती , हार तब होती है जब और कोशिश नहीं होती !
जीवन के अर्थ के विषय में जीवनशास्त्रियो में सदैव ही मतभेद रहे हैं अन्य जीवनशास्त्रियो के अनुसार.. जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम है , संघर्ष ही जीवन है । । इस सृष्टि में छोटे-से-छोटे प्राणी से लेकर बड़े-से-बड़े प्राणी तक, सभी किसी-न-किसी रूप में संघर्षरत हैं । जिसने संघर्ष (Struggle) करना छोड़ दिया, वह मृतप्राय हो गया । जीवन में संघर्ष है प्रकृति के साथ, स्वयं के साथ, परिस्थितियों के साथ । तरह-तरह के संघर्षों का सामना आएदिन हम सबको करना पड़ता है और इनसे जूझना होता है । जो इन संघर्षों का सामना करने से कतराते हैं, वे जीवन से भी हार जाते हैं, जीवन भी उनका साथ नहीं देता । जब हम संघर्ष करते हैं, तभी हमें अपने बल व सामर्थ्य का पता चलता है । संघर्ष करने से ही आगे बढ़ने का हौसला, आत्मविश्वास मिलता है और अंततः हम अपनी मंजिल को हासिल कर लेते हैं ।
जीवन एक संघर्ष
ऐसी Motivational बातें जिन्हें जानने के बाद शायद आपकी जीने की सोच ही बदल जाये
- एक सिक्का हमेशा आवाज करता है पेपर का नोट नहीं, ऐसे ही जब तुम्हारी कीमत बढे तो शांत रहना सीखो|
- वक्त का पता नहीं चलता अपनों के साथ पर अपनों का पता चल जाता है वक्त के साथ|
- बचपन की वो बीमारी भी अच्छी लगती थी, जिसमे स्कुल से छुट्टी मिल जाती थी|
- जीना दुनिया की सबसे नायाब चीज है ज्यादातर लोग बस मौजूद रहते है|
- जब प्यार और नफरत दोनों ही ना हो तो हर चीज साफ़ और स्पष्ट हो जाती है|
- सफलता पाने के लिए विश्वास करना होगा कि हम कर सकते है|
- तूफान आना भी जरुरी होता है जिंदगी में तभी पता चलता है कौन हाथ पकड़ता है और कौन साथ छोड़ जाता है
कुछ गलतियां जो हम जीवन में अक्सर करते हैं
- उन चीजों को अनदेखा करना जिन्हें हम नियंत्रित कर सकते हैं।
- उन चीजों की अत्याधिक परवाह करना जिन पर हमारा नियंत्रण नहीं है।
- एेसा मान लेना कि जिंदगी मे अब कुछ भी सीखने या करने के लिए बहुत देर हो चुकी है।
- एेसा मान लेना कि कुछ नहीं बदलेगा और आपको सब कुछ उसी रूप में स्वीकार करना पड़ेगा।
- किसी काम में मुश्किलों के अाते ही तुरंत समर्पण कर देना।
- हर वक्त हर चीज में परफेक्शन को ढूढ़ना।
- एेसा मान लेना कि मैं कुछ भी अच्छा नहीं कर सकता हूँ।
- एेसा मानना कि हमारे पास प्राकृतिक प्रतिभा नहीं है।
- अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होना।
- अपने माता-पिता की उपेक्षा करना।
- अपनी छोटी-छोटी खुशियों के लिए दूसरों पर निर्भर होना।
- हमेशा इस बात की परवाह करना कि दूसरे क्या सोचेंगे।
- सफलता की किसी और की परिभाषा को मानना। याद रखिए हर इंसान के लिए सफलता की परिभाषा अलग होती है।
हिम्मत बढ़ा देनेवाले जीवनमंत्र
मुश्किल कुछ नहीं है दुनिया में, तू जरा हिम्मत तो कर|
ख्वाब बदलेंगे हकीकत में, तू जरा कोशिश तो कर|
आंधियां सदा चलती नहीं, मुश्किलें सदा रहेती नहीं|
मिलेगी तुजे मंजिल तेरी, तू जरा कोशिश तो कर||
जीवन में गिरना भी अच्छा है औकात का पता चलता है|
बढ़ाते है जब हाथ उठाने को, तो अपनो का पता चलता है||
अगर जीवन में कुछ पाना है तो अपने तरीके बदलो, इरादे नहीं|
राह संगर्ष की जो चलता है, वो ही संसार बदलता है|
जिसने रातो से जंग जीती है, सूर्य बनकर वही निखरता है||
लोग आपके बारे में क्या सोचते है|
अगर ये भी आप सोचेंगे तो लोग क्या सोचेंगे||
नाकामियाब लोग दुनिया के डर से अपने फैसले बदल देते है|
और कामियाब लोग अपने फैसले से पूरी दुनिया बदल देते है||
जिंदगी अपने दम पर मुक्कमल हो पाती है|
औरो के दम पर तो सिर्फ जनाजे उठा करते है ||
आदमी बड़ा हो या छोटा कोई फर्क नहीं पड़ता|
उसकी कहानी बढ़ी होनी चाहिए||
जिंदगी को जलवे से जीना है तो हमेशा याद रखो ये बात
एक गाँव में लगभग 700 से 1000 लोग रहा करते थे। समस्या ये थी के वहा के लोगों में एकता नहीं थी, हमेंशा लड़ाई झगड़ा, भाई-भाई का सगा नहीं था, ना ही कोई अपने माँ-बाप और बड़े-बुजर्गों का आदर किया करता था।एक दिन एक साधू वहाँ से गुज़र रहा था, तो उसने गाँव मे ही रात रुकने का फ़ैसला किया। उसने गाँव की हालत देखी तो उसे तरस आ गया, उसने ग्रामीणों को एक किताब दी(रामायण, गीता, कुरान, बाइबिल) और कहा की इस किताब में अच्छी बातें लिखी हुई है इसे पढ़ कर या जो पढ़ना नहीं जानता सुन कर अपने जीवन मे उतारो, और अपने जीवन को सफल बनाओ और वो चले गए।ग्रामीणों में से जो पढ़ना जनता था उसने किताब को पढ़ कर सभी को सुनाया, सब को किताब की बाते अच्छी लगी, सब ने किताब की अलग-अलग प्रतियां छपवा कर अपने-अपने पास रख ली।
चूंकि किताब सब को अच्छी लगी इसलिए लोगो ने इसे अच्छी तरह कपड़े से बांध कर संभाल कर रखा, अपने बच्चों को भी छूने नहीं दिया कि कही किताब खराब ना हो जाये, फिर धीरे-धीरे लोग उस अच्छी किताब की पूजा करने लगे, काम पर जाने से पहले किताब को प्रणाम कर के जाने लगे। और ऐसा करते करते पीढियां गुज़र गई। और ऐसा आज भी जारी है…
लेकिन गांव में फिर से लड़ाई झगड़े होने लगे थे, क्योंकि गाँव वालों ने किताब को तो अपना लिया था, लेकिन उसके अंदर की बातों को नहीं अपनाया था। “किताबें महत्वपूर्ण नहीं है दोस्तों, उसके अंदर लिखी हुई बातें महत्वपूर्ण है” पढ़ो नहीं समझों ||
सफल जीवन की परिभाषा